बुधवार, 5 अप्रैल 2017

Braj 84kos padyatra day 9

1/3/2017-बलदेव कुण्ड से बहज होते हुए डीग। 



रात भर बहुत ठण्ड लग रही थी। सुबह 3:00 बजे कानों में आवाज आती है, उठ जाओ सा, मंजन कुल्ला कर लो , सुबह हो गई है ,चाय पियो ।आज सुबह 4:00 बजे चलना है ,आँखे खुलने की कोशिश करती है , और मन कहता है थोड़ी देर और सोने दो ना, तभी मन में वह संकल्प याद आता है , जो हमें आगे की यात्रा के लिए प्रेरित करता है ।सभी लाइटे चारों तरफ से जल जाती है ,सभी लोगों की प्रातः कालीन नित्य क्रियाएं शुरू हो जाती है ।सब को देखते हुए ,मैं भी झटपट उठ कर बिस्तर समेटती  हूं और नित्यक्रिया में लग जाती हूं ।4:00 बजने में 10 मिनट कम है, हम सभी राधे रानी के मंदिर के सामने आरती के लिए एकत्रित हो चुके हैं ,आरती के पूर्ण होते ही हम सभी राधे रानी के साथ अपनी यात्रा पर निकल पड़ते हैं।


आज हमारे रास्ते में बहुत सारे दर्शन नहीं थे ।आज हमें एक लंबी दूरी 20 किलोमीटर चलना था। अब हमारे ग्रुप के सभी सदस्यों में एक बहुत अच्छा तालमेल हो गया था ।हम सुबह सुबह का समय खूब जोर- जोर से भजन गाते हुए ,राधे-राधे करते हुए और मजे करते हुए चलते थे।हम सभी एक दूसरे को सखी -सखी कहकर बुलाते थे। सरोज, रंजू ,बेबी, पुष्पा,सरला ,सुशीला ,रंजीता ,रंजना ,आशा की मम्मी ,नीला जीजी ,मामीजी ये सभी मेरी सखियां थी। किसी भी यात्रा में यदि आपको एक अच्छा दोस्त मिल जाये तो सफर बहुत सुहाना और आसान हो जाता है, फिर चाहे वो जीवन की यात्रा हो या चौरासी कोस की। मेरे और सरोज के साथ ने कब इतनी लंबी दूरी तय कर ली पता भी नहीं चला।

जब आप किसी भी ऐसी यात्रा पर चलते हो जहां बहुत सारे लोग होते हैं, तो बहुत कुछ ऐसा होता है ,जो आपको हमेशा याद रह जाता है।आज हम कुछ ऐसी ही चर्चा कर रहे थे। यहां हम एक ऐसी महिला से मिले, जिनको हम जीजा बाई बोलते थे। जो जोधपुर की रहने वाली थी। वह स्वयं गठिया के रोग से पीड़ित थी, इसलिए उन्होंने इस बार पूरी यात्रा कार में ही की थी । शाम को वह जब हमारे पास  टेंट में आती थी ,तब अपने अनुभव की अच्छी-अच्छी बातें बताती थी। सभी लोग जिनके बहुत ज्यादा दर्द हो ,या जो बहुत ज्यादा पीड़ा में हो ,कोई पेट में दर्द हो ,या पैर में दर्द हो ,या सर में दर्द हो, तो सभी के वह एक प्रकार का झाड़ा देती थी ।पता नहीं वह कौन सा विश्वास था कि उनके झाड़ा  देने के बाद पीड़ित व्यक्ति को बहुत आराम मिलता था। वे कई वर्षों से इस यात्रा में आ रही है।स्वयं के दर्द को अनदेखा कर दूसरो के दुःख की परवाह कैसे करते है वो हमें अनजाने में यही सिखाती थी , उन्हें देख कर बहुत अच्छा लगता था। 


समय बढ़ता जा रहा था धीरे-धीरे धूप भी अपना रंग दिखा रही थी ।आज मेरा भी बहुत जी घबरा रहा था, चलते- चलते रास्ते में उल्टियां होने लगी, सर बहुत भारी हो गया था, और चक्कर आने लग गए थे ।अभी 10:00 ही बजे थे, मेरे साथ चलने वाले लोग, मुझे देख कर कहने लगे, कि आप गाड़ी में बैठ जाओ,आपके लिए हम फोन कर देते हैं, लेकिन मेरा मन नहीं मान रहा था। सरोज मुझसे आगे बढ़ चुकी थी, मैंने भी हिम्मत नहीं हारी और धीरे-धीरे चलती रही ।मैंने सभी को गाड़ी के लिए मना कर दिया। 1 किलोमीटर चलने के बाद, देखा तो सरोज मेरा इंतजार कर रही थी।

उसे खबर मिल चुकी थी, कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है ,हम लाल कुंड पर पहुंच गए थे।  वहां बैठे, थोड़ी देर आराम किया। कोई मेरे लिए नींबू और नमक लेकर आ रहा था, कोई अपने पास से पाचक निकालकर दे रहा था, कोई मुझे संतरा खिला रहा था, सभी अपनी- अपनी तरफ से मेरा बहुत ध्यान रख रहे थे।घर से बाहर, अनजाने लोगो का ग्रुप भी एक परिवार के सामान ही होता है, एक दूसरे का ध्यान रखना हमारी आदत बन गया था।  लाल कुंड वह जगह थी ।जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मेहंदी के हाथ धोए थे, इसीलिए यहां का पानी लाल हो गया था और यहां का नाम लाल कुंड पड़ा ।यहां पर कुछ देर आराम करने के बाद मुझे लगा की अब हम चल सकते हैं ,हाथ में नींबू उस पर नमक और काली मिर्च डालकर मैं उसका रस पीती पीती जा रही थी, लेकिन फिर भी मुझे पूरा आराम नहीं मिला और मुझे फिर से चक्कर आने लगे। तब सरोज ने मेरे लिए फोन करके गाड़ी मंगा दी और मैं वहां से 4 किलोमीटर की यात्रा में गाड़ी से टेंट पहुंची।


 शाम तक आराम करने के बाद मैं बिल्कुल स्वस्थ महसूस कर रही थी।  हमने सभी ने मिलकर राधे रानी की आरती की,ढोलक की थाप पर  खूब भजन गाए, आज हमारा टेंट जंगल में लगा था इसलिए जंगल में मंगल हो रहा था ।शाम के भोजन की तैयारी  चल रही थी।  करीब 7:30 बजे थे,भोजन कर , हम सभी अपने टेंट में बैठकर आपस में बातें करने लगे।  तभी अचानक से जोर-जोर से बादलों के गरजने की आवाज आई, हम सभी डर गए, एक तो टेंट और ऊपर से बारिश हो गयी तो , हम सभी ने अपने चारों तरफ मिट्टी की पाल बांधना शुरू कर दिया।  चारों तरफ बादल गरज रहे थे ,बहुत तेज तूफान आ रहा था, और बिजली चमक रही थी।  यकीन मानिए ,एक जंगल में एक टेंट के अंदर बहुत डर लग रहा था, तभी  माइक पर एक अनाउंसमेंट कि आवाज आने लगी।" किसी ने भी गिरिराज पर्वत से पत्थर उठाया है, और यहां लेकर आए हैं तो ,कृपया करके सभी अपने-अपने पत्थर राधे रानी के सामने लाकर रख दे ,हमें वह पत्थर  पर्वत पर वापस रख कर आने पड़ेगें ।ये  बादलों की गर्जना और बिजली का चमकना, इसी बात का इशारा है की  आप में से कोई पत्थर उठाकर  लाया  हैं ।आप सभी डरे नहीं और कृपया सभी प्रभु से क्षमा याचना करें। गोवर्धन पर्वत भगवान के समान है, वे  जहां है उनकी पूजा वहीं पर ही होती है, इसीलिए उन्हें किसी भी उद्देश्य से वहां से उठाकर लाना निषेध है।" इतना सुनते ही लोगों में  घबराहट  और भगदड़  होने लगी।  सभी अपने -अपने  बैग और सामान में तलाश करने लगे,  कि कहीं कोई  पत्थर  गलती से तो नहीं आ गया। जो लोग जान- बूझ कर लाये थे। वे सभी राधे रानी के सामने रखने लगे, देखते ही देखते वहां बहुत सारे पत्थर इकट्ठे हो गए। गोवर्धन यात्रा पर हमें कई बार कहा गया था की यहाँ से पत्थर नहीं उठाना है। कुछ लोगो को तो सही में ये नहीं पता था। परंतु कुछ लोगो के लालच ने उनके कान बंद कर दिए थे। हम सभी ने मिलकर भगवान् से क्षमा याचना की और हमारी यात्रा सफल हो इस बात की प्रार्थना की। पता नहीं,आपको भरोसा होगा या नहीं, मात्र आधे घंटे में बादल की गड़गड़ाहट ,तेज हवाये ,बिजली का चमकना जो सभी हमें डरा रहे थे, बिलकुल शांत हो गए। अचानक हुई इस शांति ने मन में एक खलबली पैदा कर दी। मानो कान्हा हँसते हुए कह रहे है, की तुम  गलत करो या सही मैं सब देख रहा हूँ। प्रकृति के कण -कण में हमारे हर क्षण में वो विद्यमान है बस हमें उसके संकेतों को पहचानने की जरूरत है। आज कुछ लोग बारिश के डर में सो रहे थे ,कुछ पश्च्याताप में सो रहे थे ,और मैं इस घटना के सार में डूब रही थी। मेरी आस्था मेरा ईश्वर के प्रति विस्वास और प्रबल  होता जा रहा था। बाहर अँधेरा गहरा होता जा रहा था, और मन में प्रकाश फैलता जा रहा था। आँखे उस रौशनी में डूबते- डूबते कल का इन्तजार कर रही थी। हर रोज मेरे कदम एक नए अनुभव की लालसा में बढ़ रहे थे, जो मिल रहा था वो कम लग रहा था।  सचमुच, लालच चैन से सोने भी नहीं देता। दिमाग ने शरीर को सोने का निर्देश दिया, और मुझे सोना पड़ा कल के इन्तजार में। 
राधे राधे 

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