सोमवार, 17 अप्रैल 2017

braj 84 kos padyatra day 12

4/3 /17 -चरण पहाड़ी ,भोजन थाली मंदिर ,विमल कुंड दर्शन।







एक अच्छी नींद के बाद ठीक 3:30 बजे मेरी आंख खुल जाती है , और तभी चारों तरफ हमारे टेंट की लाइटें भी  जल उठती है।  यह सुबह-सुबह का समय हमारे पास कुछ भी सोचने के लिए नहीं होता, बस एक ही लक्ष्य होता है 4ः15 से पहले-पहले राधे रानी के मंदिर के सामने पहुंचना क्योंकि वहां आरती शुरू हो जाती है।  वहां किसी का इंतजार नहीं किया जाता इसीलिए सभी कोशिश करते हैं कि 4:10 तक वहां पहुंच जाएं। आरती करके , आशीर्वाद ले हम राधे रानी के साथ यात्रा पर निकल पड़े।  आज भी हम पहाड़ों के बीच में से ही निकल रहे थे,चारों तरफ घोर अंधेरा था बहुत संभल- संभल कर चलना था ।  मैंने देखा आसमान में लाल, पीला, केसरी जैसे कई रंग गुलाल की तरह फैलने लगे थे। यह सूर्योदय के पहले का शंखनाद था। हम सभी एक जगह पर रुक गए और तसल्ली से सूर्य भगवान को निकलते हुए देखने लगे। सूरज तो रोज ही उगता है ,पर हम उस समय अपने घरों में अपने कार्य में व्यस्त होते है, इस यात्रा के दौरान मैंने प्रकृति के अलग- अलग कोने से सूर्योदय के अलग-अलग रूप देखे हैं। आज  ऐसा प्रतीत हो रहा था  जैसे सूर्य भगवान अपने बाल रूप में बादलों की रजाई से बाहर निकल रहे थे।



केदार से निकलते हुए आज हमारा पड़ाव काम वन में था।वहाँ एक गांव है जो की अब कामा गांव के नाम से जाना जाता है। 4 किलोमीटर चलने के बाद हम चरण पहाड़ी पर पहुंच गए। ये  क्षेत्र है जहाँ श्री कृष्ण अपने बाल सखा के साथ खेला करते थे। अपनी गायों को यहाँ चराने लाते थे।अपनी बंसी की धुन पर सभी को आकर्षित और मंत्रमुग्ध कर देते थे।  आज मेरे साथ पुष्पा मैडम चल रही थी ,जो तीन वर्षों से इस यात्रा पर आ रही है, ये मकराना में टीचर है इसीलिए हम इन्हे मैडम ही बुलाते थे। उन्होंने मुझे बताया की चरण पहाड़ी पर कान्हा खेला करते थे।

                                       

इस पहाड़ी पर एक प्राकृतिक तिसल- पट्टी बनी हुई है, ऐसा माना  जाता है की कान्हा  यहाँ फिसल -फिसल करअपनी मित्र मण्डली के साथ खेलते थे।हम भी आज कान्हा के बचपन को जीने के लिए, पहाड़ पर चढ़ कर इस तिसल -पट्टी पर फिसलने की तैयारी करने लगे। चाहे भगवान् का बचपन हो या हमारा आज भी फिसलने में उतना ही मजा आता है। हम सभी एक के पीछे एक बैठकर राधे- राधे बोलते हुए  एक साथ फिसलने लगे। पल भर के लिए ही सही सभी को कान्हा की बाल- लीला का अनुभव हो रहा था। पीछे से सभी के एक साथ आने की वजह से हम निचे फस गए थे, जल्दी से उठ नहीं पा रहे थे, तुरंत ही हमें हमारी उम्र का पता चल गया। कभी कभी बच्चा बनने का भी अलग ही मजा है।



चरण पहाड़ी पर फिसल कर हम आगे बढे, थोड़ी दूर में ही भोजन थाली मंदिर था। पुष्पा मैडम ने बताया की यहाँ जब भगवान् गायों को चराने आते थे, तो दोपहर में उनके लिए यहाँ की गुजरिया भोजन लाती थी छाछ और रोटी, तो भगवान् यहाँ बैठकर खाया करते थे।किसी प्रकार के बर्तन नहीं थे तो कान्हा ने पहाड़ को पिघला कर उसे ही बर्तनों का रूप दे दिया था।  इसीलिए यहाँ कान्हा का मंदिर है और पहाड़ पर थाली और कटोरियों की आकृति भी बनी हुई है जिसमे वे भोजन करते थे। हम सभी ने यहाँ स्टील के बर्तन मंदिर में चढ़ाये और एक बड़े कटोरे के भी दर्शन किये जहाँ कान्हा  बैठकर दूध पिते  थे, पहाड़ में इस प्रकार थाली कटोरी और बड़ा दूध का कटोरा की आकृति देख कर बहुत आश्चर्य हो रहा था। यहाँ की फोटो नहीं ले सकते थे। तो बस यहाँ से आगे हम विमल कुंड के लिए निकल पड़े। 



विमल कुंड कामा गाँव के पास ही था। यहाँ राजा विमल का राज्य हुआ करता था जो की भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे। विमल कुंड की परिक्रमा 3 km की है इसके चारों तरफ कई देवताओ के मंदिर बने हुए है। यहाँ की एक कथा और भी प्रचलित है जब राक्षस भौमासुर ने 16000 कन्याओं का अपहरण कर अपनी गुफा में कैद कर लिया था,उन्ही में से एक राजा विमल की पुत्री विमला भी थी, जो श्री कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थी।  तब उन सभी कन्याओं ने श्री कृष्ण को अपने उद्धार के लिए पुकारा और भगवान ने स्वयं आकर उन सभी की लाज बचायी और उस राक्षस का वध किया। बंदी गृह से निकल कर सभी लड़कियों ने कान्हा से कहा की अब हमें ये संसार नहीं अपनायेगा। कोई भी हमसे विवाह नहीं करेगा। हम सभी आत्मदाह कर ले, यही हमारे और हमारे पिता के लिए अच्छा होगा। उन सभी को मरने से बचने के लिए कान्हा ने उन सभी का वरण किया ,उनका जीवन सार्थक किया।देवी विमला का इस कुंड के किनारे एक मंदिर भी है।  राजा विमल ने भी कान्हा से एक वरदान माँगा की कुछ देर के लिए मुझे आपका स्वरूप दीजिये,जो इस बात का प्रमाण हो की आप यहाँ आये थे। इसीलिए यहाँ कुंड के किनारे एक मंदिर में राजा विमल और भगवान् कृष्ण की एक जैसी दो मूर्तियाँ है, जो वस्त्र हाव -भाव में   एक जैसी ही प्रतीत होती है। राजा विंमल के नाम पर ही इस कुंड का नाम विमल कुंड पड़ा।

यहाँ स्नानादि कर हमने सभी मंदिरो के दर्शन किये और हमारे पड़ाव कामा गांव पर पहुंच  गए। प्रसाद ग्रहण कर सभी अपने टैंट में आराम करने लगे। थोड़ी देर आराम करने के बाद, शाम को वहाँ से एक मोटर साईकिल वाला रिक्शा किया और  500 साल पुराने  बने राधा कृष्ण मंदिर में  गए।

यशोमति मैया से, बोले नंदलाला। 



यहाँ कान्हा को देख कर यही भजन याद आ रहा था।यहाँ आस पास कई मंदिर थे। राधा की सखी ललिता देवी ,सालिग्राम जी की पत्नी वृंदा देवी ,कामेश्वर भगवान् शिव, ये सभी मंदिर बहुत पुराने है, जिनकी कई कथाएँ यहाँ प्रचलित है।

                                     
हम  ने सभी मंदिरों  के दर्शन कियेऔर पुनः अपने टैंट में लौट आये। राधे रानी की आरती कर प्रसाद ग्रहण किया और सभी विश्राम गृह में पहुँच गए।आज पूरे दिन की यात्रा में हमने कई पुराने मंदिर देखे ,  कान्हा की दिनचर्या से जुड़े, कई प्रमाण देखे, एक साधारण बालक की भाँति वे जहाँ खेलते थे ,पहाड़ों पर भोजन करते थे, तो वही असाधारण मनु की तरह एक राक्षस से अनेक स्त्रियों को बचाकर उन्हें स्वयं के नाम से जोड़कर एक सम्मान दे रहे थे ।


अब तक ये सभी कहानियाँ मुझे पौराणिक लगती थी, परन्तु आज इन सभी के प्रमाण देख कर मुझे ये कल के इतिहास के पन्ने की भाँति प्रतीत हो रहे थे। हम जैसे साधारण लोग जो सूरदास जी या मीरा बाई की भक्ति से समानता नहीं कर सकते, लेकिन कान्हा के इतने साक्ष्यों को देख कर , स्पर्श कर, हमें भी यही अनुभव हो रहा था जैसे वे यहीं बैठकर बंसी बजा रहे है ,गइया यही चर रही है ,कहीं वे सखा के साथ खेल रहे है ,मैं  ये कह सकती हूँ की आज सभी पौराणिक कथाओं का जीवन्त चित्रण मेरी आँखों के सामने चल रहा था। ये ठीक वैसा ही है  जैसे महाराणा प्रताप के किले में जाकर हम उन्हें बहुत करीब से महसूस कर सकते हैं, तो यदि कान्हा को करीब से, दिल से महसूस करना है तो एक बार ये ब्रज यात्रा जरूर करनी चाहिए। यूँ तो भगवान कण कण में है पर ब्रज धाम में वो जीवंत दिखाई भी देते हैं, जो हमें घर बैठ कर कभी अनुभव नहीं हो सकता। आज मुझे ये समझ आया की कान्हा के बड़े- बड़े भक्त मथुरा, वृन्दावन क्यों आते थे, जबकि वे तो भगवान् को आँख बंद करके भी अपने समक्ष पा लेते थे। कान्हा का आकर्षण ,उनकी लीलाएँ ,उनकी माया नगरीऔर सर्वोपरि उनका प्रेम इतना  निश्छल ,भव्य और विशाल है की कोई भी उससे पृथक नहीं हो सकता। सभी यहाँ खींचे चले आते है।
अब रात की बातों पर विराम लगाती हूँ क्यों की  कल के रंग में डूबने के लिए आज सोना बहुत जरूरी है। 
राधे राधे। 







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